रहे जो संग बन साथी बिगाना सा नही रहता,
जहाँ विश्वास होता है कोई परदा नही रहता।
कभी तू पास आ मेरे, नही होगा गिला शिकवा,
रहोगे संग जब मेरे कोई शिकवा नही रहता।
बना के बुत मेरा,कहने लगा, तू खूबसूरत है,
नही जाने वो सच मे,इश्क भी आधा नही रहता।
डराता शोर भी मुझको,उठी लहरे समंदर की,
उड़ा नभ मे अगर बादल,कभी दरिया नही रहता।
कहाँ मिलती है अब इज्ज़त, दुखी होते बड़े बूढे,
करो सम्मान सदा इनका, वो घर बिखरा नही होता।
कभी सोचा है तुमने ज़िंदगी ऐसा भी करती है,
इक ऐसा वक्त भी आता है जब साया नही रहता।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़