फलक से चाँद तारे तुम सजा देते तो अच्छा था,
बिना तेरे जिये कैसे? जता देते तो अच्छा था।
सताते हैं तुम्हें हम भी,दिया इल्जाम अब तुमने,
लगा इल्जाम फिर हमको सजा देते तो अच्छा था।
छुपे हैं अब्र अब नभ मे,गमों के घनेरे वो,
डसे तन्हा मेरे दिल को,हँसा देते तो अच्छा था।
सुकूँ की खोज मे निकले,नही मंजिल कभी पायी,
उदासी से घिरे रहते,बता देते तो अच्छा था।
करूँ मैं याद तुमको ही,नही कटता समय मेरा,
समाये दिल मे हो अब तो,निभा देते तो अच्छा था।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़