बदरी में घरे चली आवा पिया।
अब हमके ना तरसावा पिया।
हमरे हीया में समावा पिया ना।
मारे बरखा के बौछार ।
भींजे तन मन हमार ।
आके जियरा जुड़ावा पिया।
हमरे हीया में समावा पिया ना।
हई हमहूं लरकोर,
लागल धन रोपनी के जोर।
टेकटर से खेतवा जोतावा पिया।
बरखा में रोपनी करावा पिया।
हमरे हीया में समावा पिया ना।
चुयेला घरवा ना मिले कही ठोर।
टुटही पलंगिया करी केवने ओर।
टुटहि मड़इया छवावा पिया।
नवकी पंलगिया गढ़ावा पिया।
हमरे हीया में समावा पिया ना।
– श्याम कुंवर भारती, बोकारो, झारखंड