आस तुमसे आज मुझको अब जगी है,
पा लिया तुमको अजी क्या कमी है।
छोड़ के ना जा जमाना क्या कहेगा,
आज चाहत दिल मे मेरे भी बसी है।
देखकर तुमको अजी हम मुस्कुराये,
अब लगे तुमको हमारी सादगी है।
देखकर तुमको हमे जीना पड़ेगा,
ये भी कोई जिंदगी मे जिंदगी है।
हार के तुम आज क्यो बैठे हुऐ हो,
सामने खुशियाँ लिये दस्तक खड़ी है।
दुश्मनी हमसे कभी करना नही जी,
आशिकी भी आज दिल मे अब जगी है।
जिंदगी में अब मिले खुशियाँ कहेगे।
चाह बाकी दिल हमारे आशिकी है।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली , चंडीगढ़