प्यास आंखों की दे गया कोई,
बेवफा कह निकल गया कोई।
यार कैसे जिये बिना तेरे,
हमसे दिल ही ले गया कोई।
जाम आंखो से अब पिला साकी,
तस्व्वुर बेवफा मिला कोई।
रात कैसे कटे है मजबूरी,
आज लगता मिली सजा कोई।
इश्क तेरा बुला रहा हमको,
भूल बैठा है हमनंवा कोई।
प्यार का रंग अब चढ़ा बैठे,
अब न उतरे बदन निशां कोई।
अब तिजारत बनी मुहब्बत भी,
खेलता, कर दो अलविदा कोई।
दूर कैसे भला रहे तुमसे,
प्रेम दीपक लगे जला कोई।
याद मे दिल बड़ा मेरा धड़के,
दिल हमारा ले क्यो उड़ा कोई।
लोग माँगे जमाने से दुआएँ,
ऋतु है मुंतजिर बनी दुआ कोई।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़