फागुन का जब लगे महीना, बदले सबकी चाल,
रंग-रंगीला मौसम लगता, चहुँदिश उड़े गुलाल।
पीली सरसों दिखलाती है, अपना पीला रंग,
टेसू से कुदरत देती है, रंग सुहाना लाल।
छटा सुनहरी है महुए की, करती गंध कमाल,
आम्र मंजरी लद वृक्षों पर, मन को करे निहाल।
कोयल कूके अमराई में, दिन हो या फिर रात,
स्वरलहरी के द्वारा वो नित, लेती पिय का हाल।
जीर्ण पर्ण गिर जाते खुद ही, जब ऋतु बदले चाल,
हर पादप को शोभित करते, उगकर नए प्रवाल।
मधुमासी मौसम में मोहक, करते रंग धमाल,
ढोलक की थापों पर फगुआ, संग बजें खड़ताल।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश