मनोरंजन

मंत्रमुग्धा (काव्य-संग्रह) में झलकती कवयित्री की संवेदनशीलता सुगढ़ लेखन का परिचायक

neerajtimes.com- आवरण पृष्ठ पर पर्वत पंक्तियाँ, नीलांबर तथा रक्तिम पुष्पों से अच्छादित वृक्ष एवं आत्मलीन कवयित्री… वास्तव प्रकृति की जीवंतता का यह दृश्य अति रमणीय है।

कवयित्री डॉ. कविता भट्ट जी का परिचय इतना विस्तृत है कि मेरी लेखनी में समा नहीं पाती। सम्यक में यह कहूँगी कि कविता जी योग शास्त्र एवं दर्शन शास्त्र में विशारद हैं। संप्रति वह केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड में कार्यरत हैं। उनकी लेखनी समाज की भित्ति को उत्कृष्ट करने हेतु सदैव तत्पर रहती है। प्रत्येक पीढ़ी के लिए साहित्य के माध्यम से अनवरत निष्ठा सहित कार्यरत कवयित्री स्वयंसिद्धा है। उनके कई विशेष संग्रहों में से मंत्रमुग्धा एक काव्य संग्रह है। यह संग्रह कविता की कई विधाओं से अलंकृत है। कविता कहती हैं कविता मन की अभिव्यक्ति होती है एवं इसका संप्रेषण केवल भावप्रवणता में होता है। इस संग्रह में छंदमुक्त एवं छंदबद्ध कविताएँ तथा क्षणिकाएँ, हाइकु, ताँका, चोका भी पृष्ठबद्ध हैं।

सभी रचनाएँ जितनी संवेदनशील हैं उतनी ही ऊर्जापूर्ण एवं सकारात्मक भी हैं। उन्होंने कई सुन्दर उपमाओं , शब्द बिंब एवं यथार्थ से उभरते कल्पनात्मक भावों से अभिसिक्त प्रत्येक रचना को मृदुल स्पर्श दिया है। कविता मनोद्गार को परिप्रेषित करने का कोमल माध्यम होती है। जब पीड़ा अपनी परिधि से वहिर्भूत होती है तब ज्वार सी.. उफनती नदी सी धैर्य का तटबंध ध्वस्त कर देती है। तभी कविमन अभिप्रेरित होता है… विह्वल हो उठता है एवं रच जाती है…समय शिलाओं पर हृदय आख्यायिका… पूर्ण-अर्धपूर्ण पंक्तियों में।

‘मंत्रमुग्धा’ वास्तव में पाठकों को मंत्रमुग्ध करती रचनाओं से परिपूर्ण है। योगशास्त्र एवं दर्शन शास्त्र की विदुषी की कविताएँ दार्शनिक तत्त्व से परिपूर्ण हैं।

प्रथम कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं..

“किसी तथाकथित सम्बन्ध की

उस मरुथल हुई भूमि पर

न तो उद्गम होता है

संवेदनाओं की किसी नदी का

न ही झरने बहते हैं

भावों के कलकल गुनगुनाते

फिर भी न जाने क्यों

विचरती हूँ – प्राय

स्मृतियों की पैंजनियाँ पहनकर

बजाती हूँ तर्कों के घुँघरू

रचती हूँ आदर्शों के गीत”

मन में आलोड़ित, संघर्षरत भावों को वेदनाओं के चक्रव्यूह से मुक्त करके उसे शाब्दिक रूप देना एवं प्रत्येक नारी मन की भाषा को परिभाषित करना कितना कठिन है यह उपरोक्त पंक्तियों में परिलक्षित हो रहा है।

अन्येक कविता ‘तुझे निहारूँगी चुप -सी -नदी ‘ में  कविता जी कहती हैं :

“रोना तो बहुत चाहती हूँ

हाँ, फिर भी रोऊँगी नहीं।

क्योंकि सुना है — लोग कहते

रोना कमजोरी की निशानी

चाँद को निहारते हुए सीखा है

हर शाम उगने का हुनर —

अपना टेढ़ा मुखड़ा लेकर

अब चाँद पूनम का हो या

पहली रात का सहमा सा

चाँद तो चाँद ही है।

काश टेढ़े मुँह वाले चाँद की सच्चाई

लोग समझ पाते।”

इन पंक्तियों की गहनता में यदि लीन हो जाए पाठक तो एक संवेदनशील उपकथा से साक्षात्कार होगा। किसी भी  दृष्टिकोण से देखा जाए तो कवयित्री ने अद्भुत् रूपक दिया है हृदय की अस्पृर्श्य व्यथा को।

पृष्ठ 39 की कविता ‘तुम मुक्त हो’ छायावाद शिल्प का एक जीवंत उदाहरण है। स्वयं की सत्ता से मिलना एक साधना है। किसी और की दृष्टि में स्वयं को पाना, विचारमुक्त उक्ति भी नहीं है। बहुत सुन्दर एवं सार्थक सृजन है यह कविता।

वैसे ही पृष्ठ 45 की कविता मन ‘अभिमन्यु’ एक सकारात्मक चिंतन का वह युद्ध क्षेत्र है जहाँ प्रत्येक मन युद्धरत है कई परिस्थितियों के साथ। किंतु अविजित रहता है अंत में।

पृष्ठ 52 की कविता ‘कामयाबी भिखारन हुई’ एक आशा की किरण जगाती है तो पृष्ठ 53 की कविता ‘अब अरुणोदय होगा ‘ अनेक अभिलाषाएँ एवं आशाएँ लिए कैसे प्रतीक्षारत मानवीय भावना प्रतिदिन एक नूतन ऊषा के लिए संघर्ष करती है… यह चित्रित करती है।

‘अमृत धार’ के 30 हाइकु जीवन दर्पण हैं। प्रत्येक हाइकु में जीवन की प्रत्येक स्थिति का अति सरल विचार में समाधान दृष्ट होता है।

गाँव की प्रकृति में आधुनिकता के कारण जो परिवर्तन हुआ है.. उसका चित्रण अति अल्प शब्दों में करना कितना कठिन होता है.. परंतु कवयित्री ने इस वेदना को… इस अनसुलझी स्थिति को यथावत जीवित रखते हुए पाठकों को विचार करने का अवसर दिया है।

क्षणिकाओं में जैसे पीड़ा की अनंत यात्रा का दृश्यांकन है। प्रत्येक क्षणिका जैसे आत्मा को स्पर्श करती हुई समस्त व्यथाओं को पी जाती है। मानवीय प्रेम, इच्छा, विरह, आशा, उद्देश्य । जीवन लक्ष्य से पूर्ण यह क्षणिकाएँ वास्तव में कवयित्री की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं।

चोका में प्रत्येक रचना भाव विह्वल करती हुई गहराई में पहुँचती है। मेरे पाठक मन को सिक्त करती हुई ये समस्त रचनाओं ने मेरे स्नायुओं को अनियंत्रित किया है। ये रचनाएँ गहन अभिव्यक्ति का अनन्य वर्णन है। साधारण मानव मन की व्यथा, यंत्रणा, अभीप्सा, आलोड़न, अपूर्ण आशा, इत्यादि को पूर्ण आकार एवं शब्द दे रहीं हैं ये रचनाएँ।

‘मंत्रमुग्धा’ कवयित्री कविता की विकसित भावनाओं की एक काव्य वाटिका है जहाँ हम पाठक अपनी अपनी समस्याओं का , सामाजिक संघर्षों का, आत्मिक पीड़ा का समाधान ढूँढ लेते हैं। सहज शब्द, सरल भाषा, समग्र विश्व को एक ही विचार धारा में देखने का दृष्टिकोण इस संग्रह का अलंकार है…. आभूषण है। अनन्य संग्रह है ‘मंत्रमुग्धा’ … मानवीय जीवन का स्वच्छ दर्पण है..। कवयित्री डॉ. कविता जी को हृदय गह्वर से शुभकामनाएँ एवं इस संग्रह को उत्कृष्ट पाठकीयता प्राप्त हो इसी मंगलकामना के साथ…

पुस्तक का नाम – मंत्रमुग्धा (काव्य -संग्रह) (प्रथम संस्करण -2022)

कवयित्री -डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’

प्रकाशक – शैलपुत्री (शैलपुत्री फाउंडेशन )

पृष्ठ – 104,   मूल्य – – 260

समीक्षक – अनिमा दास,  हिन्दी कवयित्री एवं साॅनेटियर, कटक, ओड़िशा

Related posts

पार लगायें – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

प्रभाती मुक्तक – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

newsadmin

सारे जहाँ से अच्छा – रश्मि मृदृलिका

newsadmin

Leave a Comment