कहीं तो ठहर गई हूं,
शून्य में ताक रही हूं,
मुझे ही नहीं पता मैं कहा खो जाती हूं अक्सर!
ज़हन में कहीं कुछ यादें दफन है,
चिंगारी सी उठती है,
और राख में शोले से उठ उठ कर दहक कर मुझे वहीं ले जाते हैं!
चेहरे पर वीरानियां,
आंखों में इन्तजार के सायं,
होठों पर खुश्क हंसी,
लेकर अक्सर एक जगह बैठ जाती हूं,
बैचेन दिल को कहीं भी राहत नहीं!
– मोनिका जैन मीनू, फरीदाबाद, हरियाणा