अगहन का महिना ठंढी लाया,
ठंडी मन को नहीं है भाया।
घाम लगता है जैसे हो चांदनी,
पर अगहन मास भी है पावनी।
अगहन पंचमी सीता विवाह का दिन,
मनाते सभी सीता-राम विवाह का दिन।
खेतों में बोते गेहूं की फसलें,
आलू, दलहन, तिलहन, भी संग में।
सजनी घर में हो रही परेशान,
साजन बिना नहीं जीना है आसान।
चल रहा अब छठा महीना,
पर साजन का पता कहीं ना।
बच्चे को कैसे पालूंगी,
पिता का नाम कैसे बताऊंगी।
पूछेगा जाओ पापा कहां हैं,
क्या बताऊंगी मुझे पता कहां है।
सोच-सोच सजनी होती दुखी,
साजन ही कर सकता उसे सुखी।
सखियां आती उसे समझाती,
गले लगा कर दुख भगाती।
कोशिश करती उसे खुश रख सके,
जितना हो सके उसे चैन दे सके।
– मुकेश कुमार दुबे “दुर्लभ”
(शिक्षक सह साहित्यकार), सिवान, बिहार