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पचास या चालीस – रेखा मित्तल

मैं पचास की उम्र में

नहीं दिखना चाहती चालीस की

पसंद है मुझे अपने बालों की सफेदी

चेहरे के साइडों से उभरते सफेद बाल

निशानी है जीवन के अनुभवों की

खट्टे मीठे उतार-चढ़ावो की

आँखों के नीचे  बढ़ती गहराइयाँ

सुनाती है दास्तां जीवन के संघर्षों की

चेहरे पर उभरती छोटी-बड़ी सिलवटें

बयां करती कहानी , चिंतन और मनन की

मैं पचास की उम्र में

नहीं दिखना चाहती चालीस की।

भूलने लगी हूँ बातों और चीजों को

लगता है कई बार ऐसे

जैसे बिल्कुल बुद्धि शून्य हो गई हो

याद ही नहीं आता अक्सर कोई नाम

या सँभाल कर रखी गई कोई चीज

चलते-चलते भी थक जाती हूँ

पर यह  थकान शारीरिक है मानसिक नहीं

अल्हड मन तो अभी भी भागता हैं

तितलियों और पतंगों के पीछे

बरसती बूँदों में भीगना,और दौड़ना

इंद्रधनुषी रंगों से खेलना चाहती हूँ।

मैं पचास की उम्र में

नहीं दिखना चाहती चालीस की।

सुकून और शांति चाहती हूँ

अब मैं जीवन में ठहराव चाहती हूँ

जीवन की इस खूबसूरत बेला में

आप सबका साथ चाहती हूँ

पसंद है मुझे अपना यह पड़ाव

जीवन को भरपूर जिया है मैंने

अपने अनुभव साँझा करना चाहती हूँ

उम्र के साथ आगे बढ़ना चाहती हूँ

मैं पचास की उम्र में

नहीं दिखना चाहती चालीस की।

रेखा मित्तल,चंडीगढ़

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