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अटूट बंधन ~ कविता बिष्ट

दिल ने आंखों की,

गहराई तलक जाकर,

पढ़ ली क़िताब प्रेम की,

मिले जब हम यारी हो गयी।

 

दूर नहीं होते हो,

तुम कभी दिल से,

अब तो ज़िंदगी की,

ता उम्र रिश्तेदारी हो गयी।

 

जबसे साँसों में मेरे,

घुल-मिल गए हो इस तरह,

हमारे प्रीत संग गीत,

की बेसुमारी हो गयी।

 

मेरे दर्द को अक़्सर,

सीने से लगा लेते हो,

अब तो आसुओं की,

भी हक़दारी हो गयी।

 

आह निकलती है,

मुख से कभी मेरे,

मुझे संभालने की,

जिम्मेदारी हो गयी।

 

दिल के अटूट बंधन,

में बांध लिया है यारा,

कविता’ तो चाहत में,

दिल से तुम्हारी हो गयी

~ कविता बिष्ट , देहरादून , उत्तराखंड

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