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नाग पंचमी – सुधा श्रीवास्तव’पीयूषी’

आज गुड़िया है बचपन की याद आ गई

मां बाप भाई सभी की याद आ गई।

कपड़े की बनी छोटी गुड़िया भरी

हाथ में बापू ने एक डलिया धरी

मैं खुद एक बापू की गुड़िया तो थी

डालो डालो इन्हें सब ने डाला वहां

फुलझड़ी लेकर बच्चे लगे पीटने

उम्र छोटी समझ में ना आया मुझे

आज उसी दर्द की मुझको याद आ गई।

मां बाप भाई सभी की याद आ गई।

 

यह गुड़ियों का त्यौहार गुड़ियों का था

पहन चूड़ी हरी मेहंदी सजने का था

लेकर आते पिता ले मेहंदी लगा

पहन पायल चूड़ी फूल बालों लगा

अपनी गुड़िया को झूला झुलाने लगे

फिर पीटना उनको क्यों वो सिखाने लगे

उस बेदर्द प्रथा की याद आ गई

मां बाप भाई सभी की याद आ गई।

 

आज नागों की पूजा का त्यौहार था

संग खाने खिलाने का व्यौहार हार था

वहाँ बागों में हर पेड़ झूले पड़े

झूलने और झुलाने का त्यौहार था

आज नागों को भी दूध पिलाया गया

प्यार से उनसे भी पेश आया गया

आरती गा के भोग लगाया गया

आंख भर आई उन सभी की याद आ गई

मां बाप भाई सभी की याद आ गई।

– सुधा श्रीवास्तव’पीयूषी’, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

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