मनोरंजन

कविते ! तुम मेरी मधुशाला हो – किरण मिश्रा

कुछ भाव भरे उम्मीदों की….,

कुछ भूली बिसरी यादों की…,

कुछ आधे अधूरे सम्वादों की..

कुछ बिछुड़े से जज्बातों की ..,

कुछ बोझिल से अहसासों की..!

 

कुछ उलझी उलझी रातों की

कुछ छूट गयी मुलाकातों की,

कुछ रात में बिखरे ख्वाबों की..

कुछ भोर तके इन्तजारों की…

कुछ रूठी रूठी बातों की…..

कुछ बिन मौसम बरसातों की..!

 

कुछ मदिरा सी, कुछ मौसम सी,

कुछ सुर वीणा,कुछ सरगम सी,

उन आती जाती साँसो की….

पल छिन में जो… मचल गयी

ऐसी..मधुरिम मुलाकातों की….

क्या तुम अनन्त आराधना हो… ?

 

बोलो…. कविते….

ओ.. …सुर सरिते….

बहती हो मुझमें गंगा सी..

पावन शब्दों  की धार लिये,

तुम तृप्त मनुज संताप हरे…!

 

तुम राधा सी़.. .हो प्रीत पगी

हो मीरा सी तुम भक्तिमयी…

कृष्णा तुम… बाँसुरी तुम्हीं .

जगती को.. अमृतपान दिया

तुमने गीता का ज्ञान दिया….

 

तुम रामायण.. तुम बन कुरान…

तुम शिवस्त्रोत,तुम रस की खान

तुम शब्द ,भाव तुम अर्थ सजी…

तुम सूर कबीर तुम ही तुलसी,

 

तुम छन्द,बन्ध तुम आला हो….

तुम जीवन,ज्योति ,ज्वाला हो,

तुम सुन्दर…सत्य शिवाला हो…

तुम प्रीति की सुन्दर माला हो….

 

ओ कविते….

ओ.. ..मीत सखे..

तुम जीवनरस की प्याला हो,

हाँ तुम मेरी मधुशाला हो……!

हाँ तुम मरी मधुशाला होे…. .!

#डाकिरणमिश्रा स्वयंसिद्धा न नोएडा, उत्तर प्रदेश

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