“याद है,तुमने कहा था ।”
चोट खाकर मैं गिरूँगी,पंथ में जब भी किसी क्षण ।
“थाम लेंगे कर तुम्हारे”,याद है तुमने कहा था ?
है प्रणय सरि अति गहनतम,पार है दुर्बोध पाना ।
एक तिनका भी न दिखता,बस नियति है डूब जाना ।
किन्तु इस मझधार से मैं,स्मरण तुमको कराती..
“तुम उतारोगे किनारे”,याद है तुमने कहा था ?
“थाम लेंगे कर तुम्हारे”—
सिद्ध दोनों मिल करेंगे,अस्ति की पावन महत्ता ।
और जीवन में रहेंगी, भूल तीजे की न सत्ता ।
उक्ति तेरी छद्म थी क्या,”अनवरत दोनों रहेंगे…
एक दूजे के सहारे”,याद है तुमने कहा था ?
“थाम लेंगे कर तुम्हारे”—
शूल आंचल ने अकेले,पंथ के सारे उठाये ।
नैन तकते रह गये पर, आज तक तुम तो न आये ।
उत्स जब था नव प्रणय का,”हो चलेंगे लब्ध मुझको,
व्योम के सारे सितारे”,याद है, तुमने कहा था ?
चोट खाकर मैं गिरूंगी,पंथ में जब भी किसी क्षण ।
“थाम लेंगे कर तुम्हारे” याद है,तुमने कहा था ?
– अनुराधा पाण्डेय द्वारिका , दिल्ली