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“थाम लेंगे कर तुम्हारे” – अनुराधा पाण्डेय

“याद है,तुमने कहा था ।”

चोट खाकर मैं गिरूँगी,पंथ में जब भी किसी क्षण ।

“थाम लेंगे कर तुम्हारे”,याद है तुमने कहा था ?

है प्रणय सरि अति गहनतम,पार है दुर्बोध पाना ।

एक तिनका भी न दिखता,बस नियति है डूब जाना ।

किन्तु इस मझधार से मैं,स्मरण तुमको कराती..

“तुम उतारोगे किनारे”,याद है तुमने कहा था ?

“थाम लेंगे कर तुम्हारे”—

सिद्ध दोनों मिल करेंगे,अस्ति की पावन महत्ता ।

और जीवन में रहेंगी, भूल तीजे की न सत्ता ।

उक्ति तेरी छद्म थी क्या,”अनवरत दोनों रहेंगे…

एक दूजे के सहारे”,याद है तुमने कहा था ?

“थाम लेंगे कर तुम्हारे”—

शूल आंचल ने अकेले,पंथ के सारे उठाये ।

नैन तकते रह गये पर, आज तक तुम तो न आये ।

उत्स जब था नव प्रणय का,”हो चलेंगे लब्ध मुझको,

व्योम के सारे सितारे”,याद है, तुमने कहा था ?

चोट खाकर मैं गिरूंगी,पंथ में जब भी किसी क्षण ।

“थाम लेंगे कर तुम्हारे” याद है,तुमने कहा था ?

– अनुराधा पाण्डेय द्वारिका , दिल्ली

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