जहाँ पर्वत के जैसे सैनिक खड़े,
उस धरा पर कभी आँच आए नहीं।
राष्ट्र जिसके लिए है सर्वोपरि,
उस जहाँ पर कभी आंच आए नहीं।
आँधी तूफान हो या प्रकृति का कहर,
वहाँ पहुँचे सदा मेरे कर्मवीर,
मौत के मुँह में जाकर हरे प्राण जो
ऐसे कर्मठ निडर मेरे शूरवीर।
ए मेरे वीर करते तुझको नमन,
तुझसे ही सुरक्षित हमारा ये वतन।
कितने माँओं ने तज दिए अपने लाल
ताकि चमके हमारे देश का भाल।
प्राण करते जो अर्पित वतन के लिए,
उन सपूतों की माँ को करें हम सलाम।
आँखे नम है मगर शीश गर्वित लिए,
कर देती है निज पूत को अंतिम विदा,
हे माता तू धन्य है जो इस वतन के लिए
कर देती है सर्वस्व अर्पण सदा।
जहाँ माओं ने जन्में हों ऐसे लला,
उस वतन पे कभी भी ना आये बला।
ऐ वतन तेरी खातिर समर्पित सदा
मेरी साँसे और धड़कन जो मुझको मिला।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर