क्यों हमें तुम याद आए
क्या तुम्हें भी हम सताए?
अब जब ऐसा हैं तो फिर
संग करें हम याचनाएं।
कुछ तुम्हारी पूर्ण होंगी
कुछ सफल मेरी दुआएं |
ऐसा होगा तो चलो फिर
जायेंगे संग शीश नवाने।
हो गई स्वीकार अब तो
तेरी मेरी प्रार्थनाएं।
दो अलग थे राह हमारी
संग एक ही द्वार है आए।
क्यों मुझे तुम याद आये।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर