विवेक जागता रहे,तो बेमिसाल ज़िंदगी-
मधुरिम वाणी सदा कराती है बंदगी,
समय के उच्च भाल पर अंकित नसीब हैं-
दिव्य सोच त्यागती विचारों की गंदगी.
मयंक भूप रात का,तमस के विनाश का-
सौंदर्य दिवस में भरा प्राची के प्रकाश का,
देव,ऋषि-मुनियों का मिलता वरदान उन्हें-
कर्मवीर होकर जो साथ लें विश्वास का.
अंजाना होता है भवितव्य अनदेखा-
वक्त सख़्त हरदम ही,कहे जीवन-रेखा,
राज है सुखों का बस बेबाक़ मुस्काओ-
क्या होगा कब जाने, किसी ने न देखा.
पीर के पहाड़ को ठेलना ही बेहतर-
आस्था,विश्वास प्रभु पर रहे निरंतर,
मान बड़ों का करें,छोटों को नेह दें-
विराजेंगे सदा हरेक दिल के अंदर.
याद रहे ज़िंदगी के होते चार दिन-
सुख से नहीं बीत सकें अपनों के बिन,
परस्पर मिलकर रहो बैरी न बनो-
विधाता गिन रहा तेरे हरेक पल-छिन.
– डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली