श्री कृष्ण तुम हमारा , उर हाल जानते हो।
फिर भी वचन निठुर से, क्यों प्राण भेदते हो।।
संदेह है न तुम हो, स्वच्छंद मन हठीले।
हे मोक्ष के प्रदायी, हम प्रेम के कबीले।।
तुम पर न वश हमारा, पर आर्त्त त्याग मत दो।
हे श्याम! स्नेह सुंदर, मम अश्रु भार मत लो।।
माना कि धर्म गृहिणी, पति-पुत्र ध्यान चिंतन।
परवश हृदय तुम्हीं में , तुम लक्ष्य हो चिरंतन।।
हे! आत्म ज्ञान प्रभुवर, हम दीन के पुजारी।
हम पर प्रसन्न होओ, आयी शरण तिहारी।।
अब चित्त ये हमारा, गृह कार्य में न रमता।
परमेश प्राण अब ये , संसार से विषमता।।
मम ध्यान तव चरण से, इक पल नहीं हटा है।
हे! प्राण प्रेम बल्लभ, अद्भुत अगन जगा है।।
अपने अधर रसों से, इह ताप को बुझा दो।
विरहिन विरह व्यथा को, अब और ना हवा दो।।
वरणा सुदेह अपना, हम भस्म-भूत करलें।
अरु ध्यान कर तुम्हारा, पद मोक्ष धार तर लें।।
मुरली मनोहरा हे, हमपर दया दिखाओ।
दासी बनू तुम्हारा, प्रियतम हमें बनाओ।।
वक्ष:स्थला अमिय तुम, नयना सुरम्य मंजुल।
घुँगरू अलक घनेरे, भुज देख काम आकुल ।।
है तीन लोक में क्या, होगी कुलक्ष दागी।
जो त्यक्त वेणुमाधव, बन जाय वे अभागी ।।
अतएव नाथ मेरे, कोमल कमल करों से।
हम दीन जन तुम्हारे, अंत: अगन हरो हे।।
तव प्रेम की कृपा का , अवलम्ब यदि न पाऊॅं।
तत्क्षण शरीर त्यागूँ , ब्रज लौट के न जाऊॅं।।
– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर