खुदा की ये है दुआ,प्यार अब बताना है,
मिली खुशी जो हमें आप पर लुटाना है।
मैं झील मे था,तो दिखती थी आब मे जुल्फें,
तुम्हारी जुल्फ के साये मे जो ठिकाना है।
कहर करे है वो हरदम वफा नही करता,
रहूँगी दूर भी अब घर नही बसाना है।
चलो भी छोड़ दो, दुनिया सराय सी समझो,
रहेगें कुछ ही दिन इक दिन यहां से जाना है।
जली है आग जो दिल मे वो बुझेगी अब कैसे,
तुम्हें भी आग मे हमको बड़ा जलाना है।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़