चलें
निहारते प्रकृति को,
जी भरकर देखें, सुंदरता इसकी !
नित्य, सुप्रभात में जल्दी उठके…..,
नयनों में उतारें, इसकी खूबसूरती !!1!!
देखें
उड़ते विहंगों को,
इनकी सुनें समझें, अनकही बातें !
सदैव रहें यहाँ खुश और प्रसन्न….,
चलें करते, मित्रता प्रकृति से !!2!!
मिलें
सुबह ओ शाम,
निकलते सूरज चंद्रमा, सितारों से !
चलें बुनते नए-नए यहाँ सपने….,
और भरते चलें, परवाज़ गगन में !!3!!
चुनें
जीवन की राहें,
कल-कल बहते, झरने जैसे !
और मस्त बयार सा चलें हौले-हौले…,
अल्हड़ प्रकृति की तरह गुनगुनाते !!4!!
बिखरे
मोती समेटते चलें,
यहाँ वहाँ जल थल गगन में चहुँओर !
और मन व्योम को चलें सदा जीतते…..,
फैलाए पंख, चलें क्षितिज की ओर !!5!!
प्रकृति
की सुंदरता को,
भरते चलें अंक, बाहुपाश में !
और निमग्न होते, इसकी सुंदरता पे…,
चलें हर पल स्वागत करते, प्रकृति का !!6!!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान