करे शायरी वो तो फनकार निकले,
मेरे दिल से खेले,गुनाहगार निकले।
किया कत्ल उसने बिना राज जाने,
वो इंसानियत के खरीदार निकले।
शजर को सजाया, बड़े प्यार से हैं,
हकीकत में बच्चों के अधिकार निकले।
चुराया है दिल अब सताते बहुत हो,
बने हो दिवाने क्यो लाचार निकले।
सजी दिल की महफिल तुम्हारे लिये ही,
मेरे दिल के मालिक भी दिलदार निकले।
नही अब बनाओ तमाशा यूँ दिल का,
खुदा तुमको माना, तुम्ही प्यार निकले।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़