डिगे रहे तुम गर्व से, किया नहीं व्यापार।
धन्य धन्य हठधर्मिता,झुका दिये सरकार।।
२-
माना शातिर तुम मियां,हिला दिये सरकार।
भक्त भले ही कर रहे, बढचढ़ कर प्रतिकार।।
३-
सच हो उत्पाती बहुत, खबरें देते झूठ।
तभी भक्त के साथ में, गयी “केसरी” रूठ।।😀
४-
माँ बहन से रचित खचित गाली खाते रोज।
मगर बड़े निर्लज्ज तुम,फिर भी देते नोज।।
५-
पानी में रहकर मियां, किये मगर से बैर।
जहर डाल रचते खबर, खुदा करें अब खैर।।
६-
तुम भी अकड़ू थे बहुत, बेचा नहीं इमान।
अहिर बहिर के संग तुम,बने तुगलिया खान।।
७-
चैनल पर तुम बैठकर, रखते मन की बात।
विधिवत चौकीदार पर, मिथ्या करते घात।।
– अनुराधा पांडेय, द्वारिका , दिल्ली