जातिवाद और धर्म का, ये कैसा है दौर ।
जय भारत,जय हिन्द में, गूँज रहा कुछ और ।।
- ●●
कब गीता ने ये कहा, बोली कहाँ कुरान ।
करो धर्म के नाम पर, धरती लहूलुहान ।।
- ●●
गैया हिन्दू हो गई, औ’ बकरा इस्लाम ।
पशुओं के भी हो गए, जाति-धर्म से नाम ।।
- ●●
जात-धर्म की फूट कर, बदल दिया परिवेश ।
नेता जी सब दोगले, बेचें, खायें देश ।।
- ●●
भक्ति ईश की है यही, और यही है धर्म ।
स्थान,जरूरत, काल के, करो अनुरूप कर्म ।।
- ●●
सब पाखंडी हो गए, जनता, राजा, संत ।
सौरभ रोये दखकर, धर्म-कर्म का अंत ।।
- ●●
पुण्य-धर्म को छोड़कर, करने लगे गुनाह ।
‘सौरभ’ लगे कठिन मुझे, है आगे की राह ।।
-प्रियंका सौरभ , उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार
(हरियाणा) -127045 (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप)