बारिश का मौसम खत्म हुआ, सर्दी की ऋतु का स्वागत हो ।
खेतों में फसलें लहलायें ,खुशहाली हो नित दावत हो ।
सोने के भाव बिकें फसलें, हालात किसानों के सुधरें ,
भूखों को दाना पानी हो ,महंगाई से कुछ राहत हो ।
माना अधिकार सभी का है ,धरना प्रदर्शन करने का ,
लेकिन मर्यादा याद रहे ,व्यक्तिगत नहीं अदावत हो ।
हालात भले ही कुछ भी हों , लेकिन इतना बस ध्यान रहे ,
लाल किले जैसी हरकत की,अब आगे नहीं हिमाकत हो ।
संवैधानिक अनुशासन हो, कानूनों का सम्मान रहे ,
खेती बाड़ी के मुद्दों पर , यूँ गंदी नहीं सियासत हो ।
कल्याण किसानों का होवे , निर्माण नये भारत का हो ,
खोजें हम राह सुधारों की, चाहे कितनी भी लागत हो ।
सौगंध राष्ट्र के हित में हों ,संकल्प देश के हित में हों ,
बेशक हों भिन्न जाति मज़हब, लेकिन अंतस में भारत हो ।
सम्मान देश के ध्वज का हो ,अभिमान हमें भारत पर हो ,
“हलधर” विद्रोही भावों की , अब आगे नहीं वकालत हो ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून