कोठी मिले या झोपड़ी कोई मकां मिले,
हर जन्म में रहने को ये हिंदोस्तां मिले।
रहमो करम नाचीज़ पर उसका बना रहे ,
सेवा करूं इस मुल्क की ऐसा रवां मिले।
आएं भले ही सैंकड़ों अवरोध राह में ,
मिलकर करें मुक़ाबला वो कारवां मिले।
ये जिंदगी निसार हो वतने-अज़ीज़ पर,
दरपेश सरहदों पे चाहे इम्तिहां मिले।
सब यार दोस्त एक से होते नहीं कभी,
कुछ रहनुमा मिले मुझे कुछ बदगुमां मिले।
दो चार शेर काम के करदे मुझे अता,
मौला मुझे साहित्य वो सायवां मिले।
हैं बदनसीब लोग जो यारी को कोसते ,
‘हलधर’ को इस समाज में सब हमनवां मिले ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून