मनोरंजन

मेरी कलम से – डा० क्षमा कौशिक

सिर मोर मुकुट वंशी कर में,अधरन मुस्कान निराली है,

चंचल नैना तिरछी चितवन,श्याम छवि अति प्यारी है।

पीत वसन,वनमाल हिये पग पैंजन बाजति न्यारी है,

श्रृंगार किए क्या नंदलला,गोपी वा पर मनहारी है।

<>

फूलों पर हैं आशना कांटों पर ऐतराज,

फूलों की जो चाहना कांटों से कर प्यार।

कांटों से गुजरे बिना पाओगे न फूल,

जीवन का सच है यही कांटों के संग फूल।

– डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड

Related posts

मृग माया – रेखा मित्तल

newsadmin

मेरी कलम से – मीनू कौशिक

newsadmin

भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन

newsadmin

Leave a Comment