बचपन से लेकर जवानी तक एक पुरुष
नये नये एहसासो ख्वाहिशों में,
सपनों और उन्मादो में बेखबर बेवजह भागता है!
मगर
परिवार बनाने के बाद,
वही आदमी सिर्फ,
एहसासो, ख्वाहिशों, ख्वाबो और चाहतों का,
एक दायरा बन जाता है!
उनके लिए रह जाता है,
बस रोटी कपड़ा और मकान !
– मोनिका जैन मीनू, फरीदाबाद, हरियाणा