रूप अनूठा कुदरत का अति, सबके मन को भाता है,
जिसने की कुदरत की रचना, उसके गुण जग गाता है।
नील गगन की छतरी सर पर, पंचतत्व का तन प्यारा,
मिला सभी को इस दुनियाँ में, श्रम करतब दिखलाता है।
जग पालक प्रिय वसुंधरा माँ, ध्यान रखे सबका हर पल,
उसकी सहन शक्ति का परचम, दसों दिशा लहराता है।
प्रकृति मनोहर सबको मोहे, अचरज भी पैदा करती,
चित्रकार ईश्वर की रचना, देख हृदय सुख पाता है।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश