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राम वन गमन – सुनील गुप्ता

(1)” रा “, राह

चुनी जो श्रीराम ने

सुन विचलित हुयी अयोध्या पूरी   !

पिता दशरथ के वचन का रखते मान….,

वनगमन पे निकले राम छोड़ साकेत नगरी !!

(2)” म “, मर्यादा

पुरुषोत्तम श्रीराम संग

चलीं जानकी जी और भ्राता लखन  !

छोड़ सभी राजसी वस्त्र सुंदर आभूषण..,

साधारण पोशाक पहने किया वनगमन !!

(3)” व “, वल्कल

वस्त्र पहने सुकुमार

चले चौदह वर्ष का काटने वनवास  !

वन उपवन कानन, करते नदिया पार…,

उत्तर से दक्षिण बनाए कई जगह निवास !!

(4)” न “, नगर

ग्राम में रुकते ठहरते

रुके बारह वर्षों तक चित्रकूट धाम  !

दिखलाते चले श्रीराम जी कई एक लीलाएं,

गोदावरी पास पंचवटी में बनाया निवास !!

(5)” ग “, गड़बड़ लीला

शुरू हुई यहीं से

और हुआ सीताजी का यहीं से अपहरण !

बन आए मारीच स्वर्णमृग के वेश में ..,

और सीताजी ने चाहा रामजी से वो हिरण!!

(6)” म “, मनःस्थिति

सीताजी की जान

श्रीराम जी ने किया पीछा मायामृग का  !

जब सुनी आर्त पुकार सीताजी ने राम की.,

तब लखन को तुरंत मदद हेतु वहां भेजा !!

(7)” न “, नहीं

लाँघना ये लक्ष्मण रेखा

हो सकती है ये धूर्तता या किसी की चाल !

माँ सीताजी से पाकर आश्वासन चले लखन,

गए उस आवाज की ओर करते हुए ख्याल !!

(8)” वनगमन “, वनगमन

रहा बहुत चुनौतीपूर्ण भरा

नहीं चैन से रहे एक पल भी श्रीराम !

किया रावण ने छल से सीता का हरण,

और यहीं से शुरू हुआ रावण से रण!!

(9)” वनगमन “, वनगमन

से राम महान बनें

और कहलाए पुरुषोत्तम श्रीराम  !

कराते गए कईयों को भवसागर पार.,

गूंज रहा नारा जग में जय श्रीराम!!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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