मनुज धर्म का पालन तब हो,सब्र रहे जब मन में,
सब्र बिना मिलना मुश्किल है,फल मीठा जीवन में।
उतावलापन पैदा करता, संबंधों में कटुता,
अपनेपन का बीज सब्र ही,बोता है धड़कन में।
क्षमा,त्याग,ममता का गहना,धीरज ही चमकाये,
कर्तव्यों का पथ न डराये, नजर न उलझे धन में।
लक्ष्य करे तय जब मानव तो,सहज नहीं मिलता है।
मित्र रहे जब धीरज तब ही,पाँव टिके अर्चन में।
नहीं साधना होती निष्फल, डटा रहे यदि मानव,
धैर्य परिश्रम सार्थक करता,ओज रहे आनन में।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश