पूस की हो सर्दियां या गर्मियां बैसाख में,
कृष्ण हो या शुक्ल हो तैयार हैं हर पाख में ।
कारगिल ,डुकलाम हो या जंग हो लद्दाख में,
शत्रु गर आगे बढ़ा तो जा मिलेगा राख में ।
हम उसी बाली के वंशज और अंगद भ्रात हैं ,
माह छः रावण रखा जिसने दबाकर काख में ।
तीन कपि बापू तुम्हारे राह भटके आजकल ,
चीन में कुछ पाक में बट्टा लगते साख में ।
फौज के आगे अड़े यदि चीन हो पाक हो ,
भारती के शेर दस भूसा भरेंगे लाख में ।
टैंक बंदूकें हमारी शान हैं शृंगार है ,
युद्ध के आलेख अंकित तोप के सूराख में ।
कौन है इस विश्व में जो जीत पायेगा हमें ,
हर तरह के शस्त्र चालन हैं हमारी जाख में ।
वक्त है अब भी सँभल जाओ अभागे सरफिरों ,
खोज मत अंगूर ताजे शुष्क “हलधर” दाख में ।
– जसवीर सिंह हलधर,देहरादून