मनोरंजन

गीत – जसवीर सिंह हलधर

राही सभी  थक कर गिरे , चलती  रहीं  पगडंडियां ।

खलिहान ही उजड़े मिले ,महकी मिलीं सब मंडियां ।।

 

जो काम उत्तम था कभी, क्यों लाभ से वंचित हुआ ।

वरदान माना था जिसे ,किसकी लगी है बददुआ ।

क्यों आत्म हत्या हो रहीं, बोलीं चिता की कंडियां ।

राही सभी थककर गिरे ,चलती रहीं पगडंडियां ।।1

 

कुछ लोग पीछे रह गए , कुछ दौड़ कर आगे बढ़े ।

हम राजनैतिक खेल के , जंजाल में उलझे पड़े ।

कुछ झोपड़ी कोठी बनी, कुछ हो गयीं वनखंडियां ।

राही सभी थककर गिरे ,चलती रहीं पगडंडियां ।।2

 

निर्जल मरुस्थल में शहर , रोती मिली यमुना नदी ।

कैसी तरक्की हो रही ,यह पूछती हमसे सदी ।

गंगा किनारे होटलों में सात रंगी झंडियां ।

राही सभी थककर गिरे,चलती रहीं पगडंडियां ।।3

 

अब नग्नता हावी हुई ,देखो कला के नाम पर ।

अश्लील गाने बिक रहे , पुरजोर ऊंचे दाम पर ।

फिल्मी सितारों ने झुकायी सभ्यता की मुंडिया ।

राही सभी थककर गिरे ,चलती रहीं पगडंडियां ।।4

 

श्रद्धा सारीके कत्ल का , उद्देश्य भी पहचान लो ।

अब निर्भया जैसा न हो, “हलधर” कड़ा संज्ञान लो ।

बेटे बनाओ देवता या बेटियों  को चंडियां  ।

राही सभी थककर गिरे ,चलती रहीं पगडंडियां ।।5

– जसवीर सिंह हलधर,  देहरादून

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