राही सभी थक कर गिरे , चलती रहीं पगडंडियां ।
खलिहान ही उजड़े मिले ,महकी मिलीं सब मंडियां ।।
जो काम उत्तम था कभी, क्यों लाभ से वंचित हुआ ।
वरदान माना था जिसे ,किसकी लगी है बददुआ ।
क्यों आत्म हत्या हो रहीं, बोलीं चिता की कंडियां ।
राही सभी थककर गिरे ,चलती रहीं पगडंडियां ।।1
कुछ लोग पीछे रह गए , कुछ दौड़ कर आगे बढ़े ।
हम राजनैतिक खेल के , जंजाल में उलझे पड़े ।
कुछ झोपड़ी कोठी बनी, कुछ हो गयीं वनखंडियां ।
राही सभी थककर गिरे ,चलती रहीं पगडंडियां ।।2
निर्जल मरुस्थल में शहर , रोती मिली यमुना नदी ।
कैसी तरक्की हो रही ,यह पूछती हमसे सदी ।
गंगा किनारे होटलों में सात रंगी झंडियां ।
राही सभी थककर गिरे,चलती रहीं पगडंडियां ।।3
अब नग्नता हावी हुई ,देखो कला के नाम पर ।
अश्लील गाने बिक रहे , पुरजोर ऊंचे दाम पर ।
फिल्मी सितारों ने झुकायी सभ्यता की मुंडिया ।
राही सभी थककर गिरे ,चलती रहीं पगडंडियां ।।4
श्रद्धा सारीके कत्ल का , उद्देश्य भी पहचान लो ।
अब निर्भया जैसा न हो, “हलधर” कड़ा संज्ञान लो ।
बेटे बनाओ देवता या बेटियों को चंडियां ।
राही सभी थककर गिरे ,चलती रहीं पगडंडियां ।।5
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून