चर्चा उनकी करना मुश्किल, जो मुझको अच्छे लगते हैं,
नैन हमारे उनको लेकर, इधर-उधर डोला करते हैं।
पढ़ने वाले पढ़ लेते हैं, आनन पर अंकित लाली से ,
हाव भाव व्यवहार इन्हीं से,प्रेमी का मन सब पढ़ते है।
आशिक हूँ मैं जिनकी उनका,मुश्किल बहुत नाम लेना है,
संस्कृति अपनी में अक्सर ही,दीवानों पर सब हँसते हैं।
भावों में विचरण करते जो, हम पसंद करते हैं जिनको ,
नजर न दुनिया की लग जाये, सभी छुपा उनको रखते हैं।
भोली सूरत मनहर मुखड़ा, नहीं हमारे दिल ने चाहा,
प्यार भरा मन पावन जिनका, उनकी राहें हम तकते हैं।
रिश्ते ऊपर वाला रचता, वही मिलाता है प्रिय जन से,
ईश्वर का उपहार छुपाने, में हम सब क्यों रत रहते हैं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश