कभी भी मेरी कहानी समझो,
भले पुरानी निशानी समझो।
सदा रहे चुप नही है बोले,
इसे तो मेरी ढिलाई समझो।
मिली खुशी अब कहाँ हमे भी,
खुदा की मरजी इसे भी समझो।
नजर मिलाते न झूठी समझो,
इसे भी मेरी मनाही समझो।
बुझा दिये हैं चिराग मैने,
अँधेरे फैले तबाही समझो।
खफा हुऐ हैं वो आज हमसे,
इसे तो मेरी विदाई समझो।
सजे हुऐ हैं ये लब तुम्हारे,
कहे सजे अब जुबानी समझो।
खिले से दिखते ये गुल कली के।
इसी को इसकी भी मरजी समझो।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़