जान कर अनजान बनने की सभी लत पालते हैं,
वक्त पे सहयोग करना लोग कम ही जानते हैं।
गुण नहीं अवगुण हमें आकृष्ट करते दूसरों के,
देख अपने अवगुणों को लोग आँखें मूँदते हैं।
प्रिय किसे होते नहीं व्यंजन मधुर ये सोचिएगा,
हाथ होता तंग तब ही लोग मिट्टी फाँकते हैं।
हम नहीं रूठे हुओं को भाव देते मत कहो यह,
बात इतनी सोचिएगा आप भी तो रूठते हैं।
जो चलन अपना सुधारें गलतियों पे ध्यान दें ‘मधु’
लोग वे ही जिंदगी में प्रेम मोती लूटते हैं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश