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गजल – रीता गुलाटी

हुऐ क्यो दूर अब हमसें, किया तुमने बहाना था.

भला कैसे जिये तुम बिन,नही हमको बताता था।

 

छुपे हैं अब्र अब नभ मे गमों के थे घनेरे वो.

डसे तन्हा ये दिल को भी,लगे दिल छटपटाता था।

 

सुकूँ की खोज में निकले,नही मंजिल कभी पायी,

उदासी से घिरे हरदम, कहाँ गुलजार मिलता था।

 

जताता प्यार की बातें,नही समझा वो उल्फत को,

इशारों ही इशारों में दिलों को वो चुराता था।

 

करूँ मैं याद तुमको ही,नही कटता समय मेरा,

समाये दिल मे हो मेरे,कहो कैसा बहाना था।

– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़

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