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कविता – जसवीर सिंह हलधर

भारत के प्रजा तंत्र जनो ,

नेता या ढ़ोंगी संत बनो ।।

मंत्री को जीजा जी कह दो ,

साले वाला ये मंत्र चुनो ।।

 

साले का रिश्ता आला है ,

ये रिश्ता बहुत निराला है ।

पत्नी भक्तों की माला है ,

साला ही सिर्फ उजाला है ।।

साले का रूप न काला है ,

जीजी के उर का ताला है ।

साला ही सुख की कुंजी है ,

साला  रिश्तों की पूंजी है ।।

साला ही तेज कतरनी है ,

ये ही तो श्रेष्ठ सुमरनी है ।

पत्नी मंत्री की ढाल तुल्,

साला राणा का भाल तुल्य ।।

पत्नी के उर बस जायेगा ,

मंत्री से  काम करायेगा ।

ऐसे ही काम की एवज में ,

तुम मोटा मोटा माल धुनो ।।

भारत के प्रजा तंत्र जनो ,

नेता या ढोंगी संत बनो ।।

 

यदि ये औषधि ना डोज लिया,

यदि नहीं नमस्ते रोज किया ।

जिंदगी कोफ़्त हो जायेगी ,

रोजाना पुलिस सतायेगी ।।

ना कर पाओगे यहाँ मौज ,

कुर्ता  फाड़ेंगे लोग  रोज ।

बस फटी पैंट नेकर होगा ,

झंडा सीढ़ी वैनर होगा ।।

रिश्वत का खेल नहीं होगा ,

गाड़ी में तेल नहीं  होगा ।

कपड़ों पर दमक नहीं होगी ,

चैहरे पर चमक नहीं होगी ।।

यदि रुतवा कायम रखना है,

तो सरल दलाली मार्ग चुनो ।

भारत के प्रजा तंत्र जनो ,

नेता या ढोंगी संत बनो ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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