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गीत – जसवीर सिंह हलधर

संग  लहरों  के  बहा  जाता नहीं है ।

सिंधु का तल भी थहा जाता नहीं है ।।

 

धार के विपरीत ही बहता  रहा हूँ ।

बात अपनी जोर से कहता रहा हूँ ।

आग पीकर भी कभी बहका नहीं मैं ,

दर्द अब खुलकर कहा जाता नहीं है ।

संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।।1।।

 

कुछ विषैले नाग भी पीछे पड़े हैं ।

मान  मर्यादा  मिटाने  पर अड़े हैं ।

जान अब कैसे बचायें जालिमों से ,

राज गैरों से कहा जाता नहीं है ।

संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।।2।।

 

भीड़ कल तक काटने को दौड़ती थी ।

जिंदगी  हर  पल नये सुर छोड़ती थी ।

वक्त की दीमक लगी है देह खाने ,

यह बुढापा यूँ सहा जाता नहीं है ।

संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।।3।।

 

आँख से काजल चुराती चाँदनी है ।

राज  छंदों  से  छुपाती  रागिनी है ।

प्यास में सूखी नदी “हलधर” हुआ है ,

रेत का सागर गहा जाता नहीं है ।

संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।।4।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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