कौन है जो मुक्त उलझन से रहा है,
हर किसी ने दर्द उलझन का सहा है।
पाठशाला जिंदगी की नित सिखाती,
हौंसले के बिन सदा सपना ढहा है।
लक्ष्य निर्धारित लगन से पूर्ण होता,
शीश छूकर पालकों ने यह कहा है।
जो समय की धार से करता बगावत ,
उलझनों ने हाथ उसका ही गहा है।
मेल जो करनी कथन में रख सका है,
अग्नि उलझन में न मानव वह दहा है।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश .