अनजान डगर पर चलकर जो,
प्राप्त लक्ष्य कर लेते हैं।
लगन परिश्रम की दुनियाँ को,
वे ही शिक्षा देते हैं।
जीवन को अनजान डगर ही,
कहते आये हैं ज्ञानी।
डरे नहीं जो पथ कंटक से,
उन्नति उनको ही पानी।
पहचाने पथ कभी किसी को,
प्राप्त न होते जीवन में।
खोज सत्य की करें वही जो,
दृग रखते हैं धड़कन में।
कभी सहारा सुविधाओं का ,
जीवन डगर न दिखलाता।
कर्म वीर बनकर ही मानव ,
आगे इस पर बढ़ पाता।
मात – पिता गुरु शिक्षा द्वारा,
सुगम बने अनजान डगर।
जो जितना निर्भीक जिया जग,
नाम उसी का हुआ अमर।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश