शैल; नदी; जीव; वृक्ष, होते सदा जन रक्ष ।
जैसे हृदय को वक्ष-हड्डियां बचाती हैं ।।
पक्ष और प्रतिपक्ष, रखें सभी एक लक्ष्य ।
हरियाली देख अक्ष, सबकी हर्षाती हैं ।।
लीजिएगा एक प्रण, प्रकृति का कण-कण ।
क्षरण न एक क्षण, यही एक थाती है ।।
ईश्वर का रूप है ये, सुंदर अनूप है ये ।
औषधीय कूप है ये, नित ही बताती है ।।
– भूपेंद्र राघव, खुर्जा, उत्तर प्रदेश