मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

मात पिता बच्चों से मिलकर, बनता है परिवार,

धीरे – धीरे  साथ  समय  के, बढ़ता  है परिवार।

 

अपनापन,  संरक्षण,  ममता, क्षमा संग दे त्याग,

जज्बातों  से  रिश्ते  सज्जित, रखता है परिवार।

 

खुशी और गम में मिल जुल कर, रहते हैं सब लोग,

हमदर्दी,  समता   का   आदर, करता  है  परिवार।

 

प्रोत्साहन,  सहयोग, लुटाये , साफ  करे  पग धूल,

सुयश,  सुकर्म   हेतु  जगाता,  रहता  है  परिवार।

 

बचपन  और  बुढ़ापा  इनको, संरक्षण  की  चाह,

जीवन  दर्शन  यह  अपनाकर, हँसता है परिवार।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश

Related posts

देखना चाहता हूँ – प्रियदर्शिनी पुष्पा

newsadmin

साहित्य संगम संस्थान प्रकाशन विभाग द्वारा समीक्षा मेध पुस्तक मेला का आयोजन

newsadmin

मानद उपाधि डाक्टरेट से सम्मानित हुए सुरज श्रीवास एवं सुश्री लक्ष्मी करियरे

newsadmin

Leave a Comment