भरोसा मत करो इन मज़हबी नेता दलालों पर,
ज़रूरत ध्यान देने की उभरते कुछ सवालों पर ।
लगाने आग भारत में दिखेंगे घूमते अक्सर ,
लपेटे तेल का कपड़ा गरीबी की मशालों पर ।
धुँआ बादल नहीं होता न वो बरसात करता ,
उठे क्यों प्रश्न संसद में अदानी के हवालों पर ।
पुराना शौक आदम का नशा या मयकशी करना ,
उठाते उंगलियां क्यों लोग व्यापारी कलालों पर ।
जिन्होंने पांच दशकों तक हमें कच्चा चवाया है ,
चुनावी दौर ये भारी सियासी उन करालों पर ।
विदेशी नास्तों का मुल्क में अब बोलबाला है ,
न जाने क्यों घटा विश्वास है देशी मसालों पर ।
हमारी मुफलिसी पर लोग हँसते मुस्कुराते थे ,
वही “हलधर” दुखी हैं आज अपने ही ख़यालों पर ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून