आदमी देखो अकेला साथ में साथी नहीं है,
झेलता हरदम झमेला नींद भी आती नहीं है।
हर घड़ी बेचैन रहता क्या सितम ढ़ाये जमाना,
कौन देता है सहारा आफतें जाती नहीं है।
दर्द से मुश्किल गुजारा ये जमाना मतलबी है,
राह चलते भूल जाते जिंदगी गाती नहीं है।
बोलना वाजिब नहीं है रूह पछताये हमेशा,
सोंचतें है रात दिन सब याद भी जाती नहीं है।
कौन है किसका यहाँ पे देखता’अनि’ है तमाशा,
मौत भी आती यहाँ चुप वक्त बतलाती नहीं है।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड