मनोरंजन

आशा – मधु शुक्ला

उथल – पुथल जीवन सागर में, होती ही रहती,

धैर्य करेगा हर मुश्किल हल, आशा यह कहती ।

 

सपनों  की  नौका  उम्मीदों, की  पतवार  गहे,

तब  ही  वह  मझधारों  में,  बेखटके   बहती।

 

ज्योति जला मनमीत प्रेम की,खार चुने पथ के,

पास निराशा फटक न पाये, हर  बाधा  ढहती।

 

कर्म डोर से आशा डोरी, प्रीति  निभाती  जब,

सांझ  जिंदगी  की  मनचाहा, रंग तभी गहती।

 

सुख – दुख में जो सम रहता है, प्रगति वही करता ,

परछाईं  बन  आशा  मन  के, ताप  सभी  सहती।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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