उथल – पुथल जीवन सागर में, होती ही रहती,
धैर्य करेगा हर मुश्किल हल, आशा यह कहती ।
सपनों की नौका उम्मीदों, की पतवार गहे,
तब ही वह मझधारों में, बेखटके बहती।
ज्योति जला मनमीत प्रेम की,खार चुने पथ के,
पास निराशा फटक न पाये, हर बाधा ढहती।
कर्म डोर से आशा डोरी, प्रीति निभाती जब,
सांझ जिंदगी की मनचाहा, रंग तभी गहती।
सुख – दुख में जो सम रहता है, प्रगति वही करता ,
परछाईं बन आशा मन के, ताप सभी सहती।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश