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प्रलय से कम नहीं होता – अनुराधा पाण्डेय

फफोले कोटि मिलते हैं, रिसा करते रुधिर उनसे ।

प्रलय से कम नहीं होता, किसी से दिल लगाना भी ।

 

जिसे पग घाव की चिंता, न भूले पाँव दे पथ में।

सतत इक धूप होती है , न कोई छाँव दे पथ में।

सरल होता नहीं जलना, शलभ बनकर दिखा देना….

नहीं तप साधना से कम, प्रणय का प्रण निभाना भी ।

प्रलय से कम नहीं होता, किसी से दिल लगाना भी ।

 

नयन के अश्रु जल से पूज्य का नित आचमन करना ।

सरल होता नहीं है आरती का दीप बन जलना ।

कभी तो वर्तिका से पूछ लेना ज्ञात तब होगा….

कठिन होता तपन कितना, सतत निज तन जलाना भी ।

प्रलय से कम नहीं होता  किसी से दिल लगाना भी ।

 

विजन में पुष्प बन खिलना , पुनः चुपचाप झर जाना ।

सरल होता न चंदन बन , विरत अम्लान गल पाना ।

नहीं है कम तपस्या से , हवन हित नित्य हवि बनना….

कठिन उर पौध को शोणित पिलाकर सींच पाना भी ।

प्रलय से कम नहीं होता  किसी से दिल लगाना भी ।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली

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