सामने हमदर्द उसकी किन्तु फितरत और है,
बात में ही है वफा दिल की हकीकत और है।
हाल जिसने भूल कर भी वक्त पर पूछा नहीं,
आप मानेंगे नहीं उसका लिखा खत और है।
तोड़ना दिल खेल होता है खिलाड़ी के लिए,
जो न देती बेवफा को श्राप चाहत और है।
बात बदले की करें कैसे हृदय सबसे जुड़ा,
मैं तना हूँ पेड़ का मेरी मुसीबत और है ।
भावनाओं की सुधा जब बाँटता ‘मधु’ आदमी,
चाह उसकी घर नहीं उसके लिए छत और है।
— मधु शुक्ला. सतना , मध्यप्रदेश