टिमटिमाती ही सही पर रोशनी आने लगी है।
रेत में डूबी नदी भी आज बतियाने लगी है ।।
गूँज अब खलिहान की कुछ दूर तक जाने लगी है ।
पीर गूँगी थी मगर वो गीत फिर गाने लगी है।।
बैल गाड़ी अब हमारी लोह का रथ हो गयी है।
अन्न भर खलिहान से सौ कोस तक लाने लगी है ।।
व्योम तक एलान है अब खेत की इस जंग का लो ।
आढ़ती की कोठियों को झोंपड़ी ढाने लगी है ।।
साठ सालों में बताओ क्या किया था आपने जी ।
धार इस कानून की क्यों आपको खाने लगी है ।।
पास क्या है आपके उपलब्धियों के नाम पर भी।
अब किसानी क्यों अचानक आपको भाने लगी है ।।
देवता हैरान हैं सरकार के एलान से अब ।
लोक में परलोक सी”हलधर” घटा छाने लगी है ।।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून