शतरंज नुमा जिंदगी, जीवन में शह-मात।
काल ताल दुनिया चले, पग पग पर आघात।।
मानव प्यादा सा खड़ा, इसकी क्या औकात।
हर दाव यह थिरक उठे, करे नव करामात।।
सज-धज के हर रूप में, राजा प्रजा वजीर।
खेल करे दिन-रात सब, ठोकें निज तकदीर।।
हर मानव है मोहरा, धरती बिछी बिसात।
माया का है दायरा, अलग अलग हालात।।
हर कोई प्यादा यहाँ, शतरंज के समान।
ना जाना हर घड़ी, खेल रहें सुलतान।।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड